आज हम झारखंड मे स्थित सभी मंदिरो के बारे मे जानेंगे | हम जिला के आधार पर उन जिलों मे स्थित सभी प्रमुख मंदिरो के बारे मे आईये जानते हैं -
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जगन्नाथ मंदिर |
गुमला
चिंतामणि मंदिर:-
सती मठः-
टांगीनाथ धाम :-
- यह धाम गुमला के मझगांव पहाड़ी पर स्थित है। एक मान्यता के अनुसार यहां आज भी भगवान परशुराम का पद चिह्न मौजूद है तथा उनका फरसा (टांगी) गड़ा हुआ है।
- इस स्थान का संबंध पाशुपत संप्रदाय से है।
महामाया मंदिर (हापामुनि गांव ) :-
- इस मंदिर का निर्माण नागवंशी शासक गजघंट राय ने 1908 ई. में कराया था। इस मंदिर में माँ काली की मूर्ति स्थापित है, जो एक तांत्रिक पीठ है।
- वासुदेव राय मंदिर (कोराम्बे):- यहां काले पत्थरों से निर्मित वासुदेव राय की प्रतिमा स्थित है। इसकी स्थापना राजा प्रताप कर्ण के द्वारा 1463 ई. में की गई थी।
- यहां रक्सैल एवं नागवंशियों बीच भयंकर युद्ध हुआ था। इसलिए इस स्थान को हल्दीघाटी तथा यहां स्थापित मंदिर को हल्दीघाटी मंदिर भी कहते हैं।
अंजनधाम मंदिर (अंजन ग्राम):-
- इसे हनुमान जी का जन्म स्थान माना जाता है। इस मंदिर के तीन और नेतरहाट की पहाड़ी तथा दक्षिण और खरवा नदी का विस्तार है।
कपिलनाथ मंदिर (दोइसानगर ):-
- नागवंशी राज रामशाह ने अपनी राजधानी दोइसा में 1710 ई. में इस मंदिर का निर्माण करवाया।
लातेहार
उग्रतारा मंदिर (चंदवा ):-
- यह मंदिर एक सिद्ध तंत्र पीठ के रूप में विख्यात है।
- पलामू गजेटियर के अनुसार मराठों के विजय स्मारक के रूप में अहिल्या बाई ने कराया था।
पलामू :-
राम-लक्ष्मण मंदिर (बभंडी ग्राम, चैनपुर ):-
- इस मंदिर में भगवान राम और लक्ष्मण की मूर्ति प्रतिस्थापित है।
दशाशीश महादेव मंदिर( जपला ):-
- एक किंवदंती के अनुसार लंका के राजा रावण ने हिमालय पर्वत से शिवलिंग ले जाते समय यहां रखा था।
प्राचीन शिव मंदिर (नगवा, चैनपुर ):-
- यह मंदिर लगभग 60 वर्ष पुरानी है। यहां श्रद्धालुओं द्वारा मांगी गयी मन्नतें पूरी होती है।
गढ़वा:-
श्री वंशीधर मंदिर (नगर उंटारी):-
- इस मंदिर का निर्माण 1885 ई. में नगर उंटारी के राजा की पत्नी शिवमणि ने करवायी थी।
- इस मंदिर में सोने से निर्मित 32 मन की प्रतिमा स्थापित है।
चतरा:-
भद्रकाली मंदिर (भदुली गांव, इटखोरी):-
- यहां कमल की आसन पर खड़ी वरदायिनी मुद्रा में में भद्रकाली की प्रतिमा है। इस प्रतिमा को बौद्ध धर्म के लोग तारा देवी की प्रतिमा मानते हैं।
- भद्रकाली की मूर्ति शक्ति के तीन रूपों (सौम्य, उग्र तथा काम) में से सौम्य रूप का प्रतिनिधित्व करती है।
- इस मंदिर का निर्माण बंगाल के शासक राजा महेंद्र पाल द्वितीय द्वारा पांचवीं छठीं शताब्दी में किया गया था। इस मंदिर के बाहर कोठेश्वरनाथ स्तूप अवस्थित है।
कौलेश्वरी मंदिर (कोल्हुआ पहाड़ ):-
- इस मंदिर की ऊंचाई लगभग 1575 फीट है। यहां काले पत्थर को तरासकर माँ कौलेश्वरी (दुर्गा) की मूर्ति स्थापित की गई है।
- कोल्हुआ पहाड़ हिन्दूद्ध तथा जैन के संगम स्थल के रूप में प्रसिद्ध है।
- कोल्हुआ पद जैन के दर्थ तीर्थंकर शीतलनाथ की तपोभूमि व जीनसेन का साधना का स्थ माना जाता है।
- कोल्हुआ पहाड़ पर भगवान बुद्ध की ध्यानमग्न मुद्रा में प्रतिमाएँ स्थापित है।
- यहां पर जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव व पाश्र्वनाथ की प्रतिमाएं स्थापित है।
सहस्त्रबुद्ध मंदिर: चतरा
देवघर:-
वैद्यनाथ धाम मंदिर -
- वर्तमान में स्थित मंदिर का निर्माण गिद्धौर राजवंश के दसवें राजा पूरणमल द्वारा 1514-15 ई. के बीच कराया गया।
- यह भारत के 51 शक्तिपीठों में से एक है। शिव के 12 ज्योतिलिंगों में मनोकामना लिंग यहाँ स्थित है। पुराणों के अनुसार इस मंदिर को अंतिम संस्कार हेतु उपयुक्त स्थान माना गया है।
- इस मंदिर के प्रांगण में गर्भ गृह सहित कुल 22 मंदिर स्थित है।
- गिद्धौर वंश के ही राजा चंद्रमौलेश्वर सिंह ने मंदिर के गुम्बद पर स्वर्ण कलश स्थापित कराया था। इस मंदिर की मुख्य विशेषता यह है कि अन्य शिव मंदिरों की भांति इस मंदिर के गुम्बद में त्रिशुल की जगह पंचशुल लगा हुआ है।
तपोवन मंदिर:-
- किंवदति के अनुसार माता सीता जी ने यहां तपस्या की थी।
- भगवान शिव के इस मंदिर में अनेक गुफाएं हैं, जिसमें ब्रह्मचारी लोग निवास करते हैं।
युगल मंदिर:-
- इस मंदिर की ऊंचाई 146 फीट है। इसकी बनावट बेलूर के राम कृष्ण मंदिर की भांति है।
- इसे नौलखा मंदिर के नाम से जाना जाता है क्योंकि इस मंदिर के निर्माण में नौ लाख रुपये की लागत आयो थी, जो रानी चारुशीला ने दान में दी थी।
- इस मंदिर का निर्माण तपस्वी बालानंद ब्रह्मचारी के अनुयायियों ने 1936 ई. में शुरू किया था।
पथरौल काली मंदिर:-
- इस मंदिर का निर्माण पथरौल राजा दिग्विजय सिंह ने कराया था।
- इस मंदिर में माँ काली की प्रतिमा स्थापित है, जो माँ दक्षिण काली के नाम से प्रसिद्ध है। दीपावली के अवसर पर यहां बड़े मेले का आयोजन होता है।
दुमका :-
बासुकीनाथ मंदिर (जरमुंडी ):-
- इसका निर्माण वसाकी तांती (हरिजन जाति) ने कराया था।
- इस मंदिर में मनोकामना पूरा करने हेतु श्रद्धालुओं द्वारा धरना देने की परंपरा है।
- बासुकीनाथ की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। समुद्र मंथन में मंदराचल पर्वत को मथानी तथा बासुकीनाथ को रस्सी बनाया गया था।
मौलाक्षी:-
- इस मंदिर का निर्माण बांग्ला शैली में किया गया है। यह मंदिर तांत्रिक सिद्धी का केंद्र रहा है। इस मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में ननकर राजा बसंत राय द्वारा कराया गया था।
- यहां प्रतिमा पूर्ण नहीं है, बल्कि केवल मस्तक है, यही कारण है कि इसे मौलाक्षी कहा जाता है।
गिरिडीह:-
झारखण्ड धाम:
- गिरिडीह, बगोदर प्रखंड में स्थित इस मंदिर में 65 फीट ऊँची शिवलिंग स्थापित है।
रामगढ़:
- माँ छिन्नमस्तिका मंदिर (रजरप्पा ) :
- यह दामोदर तथा भैरवी (भेरा/भेड़ा) नदी के संगम पर स्थित है।
- इस मंदिर में माँ काली की धड़ से अलग सर वाली मूर्ति प्रतिष्ठापित होने के कारण इसे छिन्नमस्तिका कहा जाता है। माँ काली का यह छिन्न मस्तक चंचलता का प्रतीक है।
- इस प्रकार भारत के प्रसिद्ध 51 शक्तिपीठों में यह भी शामिल है। इस स्थान का प्रयोग तांत्रिक अपनी तंत्र-साधना हेतु करते हैं।
- 1947 ई. तक यह मंदिर वनों से घिरा था जिसके कारण इसका नाम 'वन दुर्गा मंदिर' भी पड़ गया। यह कामाख्या मंदिर की शिल्पकला से प्रभावित है।
कैथा शिव मंदिर:-
- इस मंदिर का निर्माण 17वीं सदी में रामगढ़ के राजपरिवार दलेर सिंह द्वारा करवाया गया था।
- इस मंदिर के निर्माण में मुगल, राजपूत तथा बंगाल स्थापत्य कला का मिश्रण है। इस मंदिर का उपयोग सैन्य उद्देश्य से किया जाता था।
- भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा इस मंदिर को राष्ट्रीय धरोहर घोषित किया गया है।
गोड्डा:-
माँ योगिनी मंदिर (बाराकोपा पहाड़ी):-
- मान्यता है कि यहां माँ सती जी की दाहिनी जांघ गिरी थी जिसकी आकृति प्रस्तर अंश यहां स्थापित है।
- कामाख्या मंदिर की ही भांति यहां पिंड की पूजा की जाती है तथा इस मंदिर में लाल रंग के वस्त्र चढ़ाने की प्रथा है।
हजारीबाग:-
शिव मंदिर (बादम गांव ):-
कोडरमा:-
माता चंचला देवी:-
धनबाद:-
भूफोर मंदिर:-
- यह मंदिर भूमि तथा पृथ्वी के जनजातीय देवता को समर्पित है।
शक्ति मंदिर:-
- इस मंदिर में हिमाचल प्रदेश के ज्वाला जी मंदिर से लाकर अखण्ड ज्योति स्थापित की गई है।
लिलोरी मंदिर:-
- इस मंदिर में महाकाली की प्रतिमा स्थापित कतरासगढ़ के राजा सुजन सिंह ने लगभग 800 वर्ष पूर्व कराया था। यहां प्रतिदिन पशु बलि दी जाती है।
पार्वती मंदिर:-
- यह मंदिर कंसाई नदी के तट पर देवी पार्वती की चार भुजाओं वाली प्रतिमा के रूप में स्थित है।
शिव मंदिर (तेलकूपी) :-
- यह नदी दामोदर नदी के तट पर स्थित है।
राँची:-
पहाड़ी मंदिर:-
- यह मंदिर रांची में स्थित टोंगरी पहाड़ी (रांची बुरू) पर स्थित है। इस मंदिर में श्रावण माह तथा महाशिवरात्रि के दिन अत्यंत भीड़ होती है। श्रावण माह के दौरान प्रत्येक सोमवार को श्रद्धालू मंदिर से 12 किलोमीटर दूर स्थित स्वर्णरेखा से जल लेकर इस मंदिर में चढ़ाते हैं।
- स्वतंत्रता के पहले इस पहाड़ी का प्रयोग अंग्रेजों द्वारा फांसी देने हेतु किया जाता था।
- इस पहाड़ी की ऊंचाई 300 फीट है तथा इसमें 468 सीढ़ियाँ बनी हैं।
- 15 अगस्त, 1947 से प्रत्येक स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस के अवसर पर तिरंगा फहराया जाता है |
जगन्नाथ मंदिर:-
- इसका निर्माण 25 दिसम्बर, 1691 ई. में ठाकुर एनी शाह ने करवाया था।
- इस मंदिर में जगन्नाथ, सुभद्रा तथा बलराम की मूर्तियाँ प्रतिस्थापित है।
- इस मंदिर की ऊँचाई 100 फीट है।
सूर्य मंदिर (बुंडू रांची):-
- यह मंदिर राँची टाटा राजमार्ग पर स्थित है।
- इस मंदिर की खूबसूरती के कारण इसे पत्थर पर लिखी कविता की संज्ञा दी जाती है।
- इस मंदिर का निर्माण राँची की एक संस्था संस्कृति विहार ने कराया था तथा इसके शिल्पकार एस.आर. एन. कालिया थे।
मदन मोहन मंदिर (बोडेया, कांके रांची):-
- 1665 ई. में राजा रघुनाथ शाह की उपस्थिति में लक्ष्मी राम तिवारी द्वारा वैशाख शुक्ल पक्ष दशमी को इस मंदिर का शिलान्यास किया गया। इस मंदिर के शिल्पकार अनिरुद्ध मिस्त्री था। इसके निर्माण में लगभग 17 वर्ष और 14,001 रुपये लगी थी।
देउड़ी मंदिर ( तमाड़, रांधी ):-
- यहां 16 भुजी माँ दुर्गा की मूर्ति स्थापित है, जो काले रंग के प्रस्तार खंड पर उत्कीर्ण है यहां माँ दुर्गा शेर पर विराजमान न होकर कमल पर विराजमान हैं।
- यह मंदिर चतुर्भुजाकार है। परंपरागत रूप से यहां 6 दिन पाहन (आदिवासी) व एक दिन ब्राह्मण पुजारी के द्वारा पूजा किया जाता है।
राम-सीता मंदिर (चुटिया, रांची):-
- नागवंशी राजा रघुनाथ शाह ने 1685 ई. में इस मंदिर का निर्माण कराया था।
- 28 जनवरी, 1898 ई. को मुण्डा उलगुलान के दौरान बिरसा मुण्डा ने अपने अनुयायियों के साथ इस मंदिर की यात्रा की थी।
शिव मंदिर (हारिण):-
- इस मंदिर में कोल विद्रोह के दौरान अंग्रेजों द्वारा गोलियां चलाई गयी थी जिसके निशान आज भी मौजूद हैं।
पश्चिमी सिंहभूम
महादेवशाला मंदिर:-
- यह मंदिर मनोहरपुर और गोइलकेरा स्टेशन के बीच महादेवशाला में स्थित है। बेनीसागर का शिव मंदिर:- इसका निर्माण 602-625 ई. में संभवत: गौड़ शासक शशांक द्वारा कराया गया था।
पूर्वी सिंहभूम :-
रॉकनी मंदिर (घाटशिला):-
- इस मंदिर का निर्माण महुलिया पहाड़ी पर किया गया था, जहां नर बलि की प्रथा देने का प्रचलन था।
- इस मंदिर में रकिनी देवी की पूजा की जाती है।